Secret of bloody stepwell
गांव के पास एक बहुत ही पुरानी और प्रसिद्ध बावड़ी थी…नवरात्री में अक्सर वहां मेला लगता था मेले की भीड़ देखने लायक होती थी…दूसरे गांव और शहरों से भी लोग उस मेले में आते थे और बावड़ी में स्नान करते थे…
मान्यता थी कि इस बावड़ी में नहाने से शरीर सारे रोगों से मुक्त हो जाता है…वहीं नवरात्री के आखिरी दिन इसी बावड़ी में माता की मूर्ती का विसर्जन होता था…हर बार की तरह इस बार भी नवरात्री में बड़ा मेला लगा हुआ था, दूर-दूर से आए लोग इस बावड़ी में नहाकर अपने शरीर को रोगमुक्त कर रहे थे…नवरात्री के आखिरी दिन बैंडबाजा के साथ लोग मूर्ति विसर्जन के लिए आए…सब कुछ ठीक ठाक चल रहा था लोग गाने की धुन पर नाच रहे थे कि तभी आचानक गोलियों की आवाज से वहां भगदड़ मच गई…
दरअसल वहां दो पक्षों में मूर्ति विसर्जन को लेकर कहासुनी हो गई जिसने भयानक रूप ले लिया और फिर फायरिंग शुरू हो गई…इस भगदड़ में कई लोगों की दब-कुचल कर मौत हो गई तो वहीं कुछ लोग जिन्हें तैरना नहीं आता था उनकी बावड़ी में डूबकर मौत हो गई, मरने वालों में बच्चे भी शामिल थे…इस हादसे के बाद से उस बावड़ी को लोग खूनी बावड़ी कहने लगे थे…वहां पर अब मूर्ति विसर्जन पर रोक लगा दी गई लेकिन नवरात्री में अभी भी मेला लगता था…लेकिन मेले के दौरान अक्सर उस बावड़ी में किसी ना किसी की डूबकर मौत हो जाती थी…
लोग अब उस खूनी बावड़ी के अगल-बगल से भी गुजरने में डरते थे…किसी-किसी का तो कहना था कि रात में वहां से बचाओ-बचाओ की आवाजें सुनाई देती हैं, वहीं सब दिखाई देता जो उस दिन हुआ था…समय बीतता जा रहा था और खूनी बावड़ी पर मेला लगना भी बंद हो गया था… वहां पर अब शमशान घाट बना दिया गया था…शायद लोग वहां से आना जाना भी बंद कर देते लेकिन वही एक रास्ता था जो गांव को शहर से जोड़ता था…गांववालों ने ग्राम प्रधान से मांग की थी कि लोगों की भलाई को देखते हुए वो दूसरा रास्ता बनवाए लेकिन इसमें काफी साल लगने वाले थे तो मजबूरी में लोगों को उसी रास्ते से जाना पड़ता…लोगों की पूरी कोशिश रहती कि वो सूरज ढलने से पहले ही वहां से निकल लें…
जान में जान आई…
शहर में पला-बढ़ा शशांक इन बातों से अनजान था अभी हाल ही में उसकी नौकरी गांव के प्राइमरी स्कूल में लगी थी…टीचर की पोस्ट से वो बहुत ही खुश था और अगले ही दिन उसे ज्वाइनिंग के लिए गांव निकलना था…ट्रैन लेट थी तो उसे स्टेशन पर पहुंचने में रात हो गई…स्टेशन बड़ा सूनसान था बस इक्का-दूक्का लोग ही दिख रहे थे…स्टेशन से निकलकर उसने गांव जाने के लिए रिक्शा करना चाहा लेकिन दोगुना, तीनगुना दाम देने पर भी कोई उस रास्ते से गांव जाने को तैयार ही ना था…स्टेशन से गांव बस तीन किलो मीटर ही दूर था तो उसने फिर पैदल ही गांव जाने का मन बनाया…
पीठ पर बैग कान में हैडफोन लगाए वो सूनसान रास्ते पर गूगल मैप के सहारे गांव के रास्ते चला जा रहा था…जैसे ही वो खूनी बावड़ी के पास पहुंचा उसे गोलियां चलने की आवाजें सुनाई दी…आवाजें इतनी तेज थी कि हैडफोन लगाने के बाद भी साफ-साफ सुनाई दे रही थी…उसने हैडफोन निकाला और डर से इधर-उधर देखना लगा…लेकिन दूर-दूर तक उसे कोई नजर नहीं आ रहा था…वो अपने कदम तेजी से बढ़ाने लगा तो देखा कि एक जगह आग जल रही है और कोई आदमी वहीं बैठा बीड़ी पी रहा है…शशांक की जान में जान आई वो उस आदमी के पास गया और उसने उनसे एक बीड़ी मांगी…आदमी ने उसी आग में जलाकर शशांक को भी बीड़ी दे दी, इससे पहले की शशांक कुछ पूछता उसे बचाओ-बचाओ की आवाजें सुनाई दी…
बावड़ी में छलांग लगा दी…
उसने मुड़कर चारों तरफ देखा तो उसके पैरों तले जमीन खिसक गई… उसको पसीना आने लगा, गला सूखा जा रहा था…वो शमशान घाट के बीचों-बीच खड़ा था उसने देखा कि वो आदमी भी गायब है और जिस आग से जलाकर उसने बीड़ी दी थी वो किसी चिता थी जो धीरे-धीरे बुझ रही थी…शशांक वहां से भागने लगा तभी उसे फिर से वहीं आवाजें सुनाई दी जो उससे मदद मांग रही थी…शशांक को लगा कि कोई और भी है जो उसी की तरह यहां पर फंस गया है…वो आवाजों का पीछा करने लगा ये आवाज बावड़ी में से आ रही थी…उसे लगा कि शायद कोई डूब रहा है, बिना कुछ सोचे उसने बावड़ी में छलांग लगा दी…
बावड़ी के अंदर का नजारा बिल्कुल अलग ही था उसमें सौ से ज्यादा लोग जैसे उसका ही इंतजार कर रहे थे उन्होंने शशांक के पैर पकड़ लिए और उसे गहराई में ले जाने लगे शशांक को घुटन सी होने लगी, पानी के अंदर वो ज्यादा देर तक सांसे नहीं रोक पा रहा था ऊपर से उन डरावने लोगों को देखकर उसका शरीर वैसे ही उसका साथ छोड़ रहा था…शशांक समझ चुका था कि अब वो नहीं बच पाएगा तो उसने जान बचाने के लिए अपने हाथ-पैर भी चलाने छोड़ दिए वो धीरे-धीरे गहराई में जा रहा था और अब उसकी सांसे थमने वाली थी तभी जैसे किसी ने उसकी शर्ट को पकड़कर उसे खींचा और एक ही झटके में उसे खूनी बावड़ी से बाहर निकाल दिया…
शशांक बेहोश हो चुका था सुबह जब आंख खुली तो देखा कि लोग उसे घेरकर खड़े हैं और वो अब भी खूनी बावड़ी की सीढ़ियों पर पड़ा था…उसके उठते लोगों ने सवाल पूछने शुरू कर दिए…लेकिन उसे समझ में नहीं आ रहा था कि जो कुछ भी उसके साथ हुआ उसपर कोई विश्वास भी करेगा…तभी किसी ने कहा कि भला हो इस रखवाले का जो उसने खूनी बावड़ी में तुम्हारा खून होने से बचा लिया, शशांक ने रखवाले की तरफ मुड़कर देखा तो ये वही आदमी था जो चिता में बीड़ी जलाकर पी रहा था…खूनी बावड़ी को लेकर शशांक के मन में कई सवाल थे लेकिन उन सवालों का जवाब ढूढ़ने से ज्यादा जरूरी था उसका प्राइमरी स्कूल पहुंचना क्योंकि आज से वहां उसकी ज्वाइंनिंग थी…और इस तरह से उस रात उस आदमी ने खूनी बावड़ी में शशांक का खून बहने से रोक लिया।